ईर्ष्या का विष
शिवानी जैन एडवोकेटByss
मन में जलाकर द्वेष की ज्वाला,
क्यों करते हो जीवन को काला?
जिससे ईर्ष्या, उसका क्या हरोगे,
अपनी ही शांति, सुख तुम खो दोगे।
वह तो चलेगा अपनी राहों पर,
तुम जलते रहोगे आहों पर आहों पर।
उसकी तरक्की देख कुढ़ोगे दिन रात,
अपनी ही हंसी भूलोगे, भूलोगे प्रभात।
ईर्ष्या का विष है ऐसा गहरा,
जो बोता है मन में बस अँधेरा।
न चैन की नींद, न मन का आराम,
बन जाता जीवन एक दुखद संग्राम।