हसीन लगाने की वज़ह कुछ ही रही।
उम्र तीस की लगती चालीस की रही।।
कुछ और बढ़ा दो उससे हमको क्या।
जिस रूप में भी रही नजर नीची रही।।
जुल्फों को गिरा कर उठाती 'उपदेश'।
मखमली त्वचा उसके चेहरे की रही।।
अब थोड़ी सी मोटी कमर में उछाल।
देखने के नजरिए से वो बेहतरीन रही।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद