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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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कविता की खुँटी

                    

इक़बाल सिंह “राशा” की लम्बी कविता “तेरे नाम के सिक्के”

मैंने उम्र भर
छंद के सिक्के गढ़े —
शब्दों की दुकानों पर
ज़िंदगी को तुलते देखा।

कुछ वाहवाही में
कुछ तालियों में
कुछ गुमनाम दीवारों पर —
मेरी पहचान के टुकड़े बिकते रहे।

लेकिन आज
मैं तेरी चौखट से गुज़रते हुए
खाली जेबों की आवाज़ से डर गया हूँ।

मैंने सुना है —
वहाँ धड़कनों की भाषा नहीं चलती,
न ही काग़ज़ों पर लिखे प्रमाण पत्र —
वहाँ सिर्फ़ तेरे नाम के सिक्के चलते हैं।

सिक्के —
जो प्रेम में गले लगने से बनते हैं,
जो मौन में रोने से ढलते हैं,
जो हर स्वास में “तू ही तू” कहने से चमकते हैं।

मैं अब
तेरी दुकान का व्यापारी बनना चाहता हूँ —
जहाँ न कोई ग्राहक हो,
न कोई बिक्री,
सिर्फ़ मैं…
और तू…
और कुछ सिक्के
जो तेरे दरबार में चलते है।

जब ये सिक्के
गिनने का समय आएगा —
तब ना कोई मंच बचेगा,
ना कोई श्रोता,
ना तालियाँ…

बस एक मौन देहरी होगी —
जिसके पार तू खड़ा होगा।
और मैं —
नंगे पाँव,
थकी साँसों,
काँपती आत्मा से
तेरे सामने रख दूँगा
अपने जीवन का थैला।

वो थैला —
जिसमें कुछ पदक होंगे,
कुछ तुकबंदियाँ,
कुछ “मैं ने ये किया” की चिट्ठियाँ…

और शायद कुछ अधजले काग़ज़
जिनपर “प्रभु” लिखना शुरू किया था
पर पूरा कभी हुआ ही नहीं।

तू देखेगा…
और मैं देखूँगा —
कि क्या बचा है
उस “मैं” के नीचे
जो सिर्फ़ “तू” की तलाश में था।

तू शायद
कुछ नहीं कहेगा —
तेरे मौन में ही
मेरा अंतिम फ़ैसला लिखा होगा।

अगर
मेरे आँसू
तेरे तराज़ू की एक बाँट बन जाएँ,
अगर
मेरे पछतावे की राख
तेरे दीप का बाती बन जाए —
तो शायद
मुझे भी
एक कोना मिल जाए
तेरे अनंत आलोक में।

अब मैं
ज़िंदगी को कोई नाम नहीं देना चाहता।
ना कवि, ना ज्ञानी, ना लेखक,
बस इतना कि —
मैं वो हूँ
जिसने मृत्यु से ठीक पहले
तेरे नाम के कुछ सिक्के
बाँध लिए थे
अपनी साँसों में।

-इक़बाल सिंह “राशा“
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

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शिवचरण दास said

वाह वाह आपकी अभिव्यक्ति में बहुत गहन अहसास है बुलंद इक़बाल है

वन्दना सूद said

उस “मैं” के नीचे
जो सिर्फ़ “तू” की तलाश में था।🙏🙏👌👌आपकी हर पंक्ति जैसे हमें जीना सीखा रही हो या ये कहूँ सीखा रही है
आपका हर शब्द हर पंक्ति बार बार पढ़ने का मन करता है जैसे भगवान ख़ुद हमें कुछ समझा रहे हों 🙏🙏शुक्रिया आपका

वन्दना सूद said

मुझे तो आप अपना ऐसा फैन मान लीजिए जो कभी आपको मिल गयी तो आपके भाव के पीछे की कहानी जानना जरूरी चाहूँगी

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

उनकी दुकान में सिर्फ वो ही सिक्के चलते हैं जो मौन में रोने से ढलते हैं, प्रेम में गले लगने से बनते हैं। आपकी कविता को बार-बार पढ़ने का मन होता है। आप अपनी कविता जैसे कलम से नहीं, अंतर्मन की भावनाओं से लिखते हैं जो सीधे पाठक के दृष्टिपटल पर उभर कर दिखाई देने लगती है।🌹🌹👌👌🙏🙏

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