मैंने उम्र भर
छंद के सिक्के गढ़े —
शब्दों की दुकानों पर
ज़िंदगी को तुलते देखा।
कुछ वाहवाही में
कुछ तालियों में
कुछ गुमनाम दीवारों पर —
मेरी पहचान के टुकड़े बिकते रहे।
लेकिन आज
मैं तेरी चौखट से गुज़रते हुए
खाली जेबों की आवाज़ से डर गया हूँ।
मैंने सुना है —
वहाँ धड़कनों की भाषा नहीं चलती,
न ही काग़ज़ों पर लिखे प्रमाण पत्र —
वहाँ सिर्फ़ तेरे नाम के सिक्के चलते हैं।
सिक्के —
जो प्रेम में गले लगने से बनते हैं,
जो मौन में रोने से ढलते हैं,
जो हर स्वास में “तू ही तू” कहने से चमकते हैं।
मैं अब
तेरी दुकान का व्यापारी बनना चाहता हूँ —
जहाँ न कोई ग्राहक हो,
न कोई बिक्री,
सिर्फ़ मैं…
और तू…
और कुछ सिक्के
जो तेरे दरबार में चलते है।
जब ये सिक्के
गिनने का समय आएगा —
तब ना कोई मंच बचेगा,
ना कोई श्रोता,
ना तालियाँ…
बस एक मौन देहरी होगी —
जिसके पार तू खड़ा होगा।
और मैं —
नंगे पाँव,
थकी साँसों,
काँपती आत्मा से
तेरे सामने रख दूँगा
अपने जीवन का थैला।
वो थैला —
जिसमें कुछ पदक होंगे,
कुछ तुकबंदियाँ,
कुछ “मैं ने ये किया” की चिट्ठियाँ…
और शायद कुछ अधजले काग़ज़
जिनपर “प्रभु” लिखना शुरू किया था
पर पूरा कभी हुआ ही नहीं।
तू देखेगा…
और मैं देखूँगा —
कि क्या बचा है
उस “मैं” के नीचे
जो सिर्फ़ “तू” की तलाश में था।
तू शायद
कुछ नहीं कहेगा —
तेरे मौन में ही
मेरा अंतिम फ़ैसला लिखा होगा।
अगर
मेरे आँसू
तेरे तराज़ू की एक बाँट बन जाएँ,
अगर
मेरे पछतावे की राख
तेरे दीप का बाती बन जाए —
तो शायद
मुझे भी
एक कोना मिल जाए
तेरे अनंत आलोक में।
अब मैं
ज़िंदगी को कोई नाम नहीं देना चाहता।
ना कवि, ना ज्ञानी, ना लेखक,
बस इतना कि —
मैं वो हूँ
जिसने मृत्यु से ठीक पहले
तेरे नाम के कुछ सिक्के
बाँध लिए थे
अपनी साँसों में।
-इक़बाल सिंह “राशा“
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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