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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

ख़ुशी मिलने चली आई - सुप्रिया साहू

ख़ुशी मिलने चली आई

ढूंढा जब दिन-रात, कहीं नजर नहीं आई।
ढलते ही शाम के, खुशी मिलने चली आई।।

थके हारे थे हम, अब जोरो से प्यास लगी।
वो हमारी बनकर, प्यास बुझने चली आई।।

डूबे थे ग़म के रास्ते में, है आंखों में आसूं।
वो बिटिया बन, हमारी आंसू पोछने आई ।।

जब कष्टों में नींद नहीं आती, सोच-सोच के।
वो किलकारी बन, हमारी नींद उड़ाने आई ।।

बड़े दिन बाद ही सही, हमारे घर के आंगन में।
"सुप्रिया" लक्ष्मी बन, खुशी मिलने चली आई।।

- सुप्रिया साहू




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (6)

+

श्रेयसी said

वाह बहुत सुंदर 🙏🙏

Supriya sahu replied

धन्यवाद मैम🥰😊, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

Updesh Kumar Shakyawar said

वाह अति उत्तम अभिव्यक्ति के लिए सुप्रिया जी को सलाम

Supriya sahu replied

बहुत - बहुत आभार एवं शुक्रिया आदरणीय सर जी 🥰😊, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

Shiv Charan Dass said

आप बिटिया बन सबके आंसू पोंछने आई बहुत खूब

Supriya sahu replied

बहुत - बहुत आभार एवं शुक्रिया आदरणीय दास सर जी 🥰😊, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

बहुत सुंदर रचना, बधाई बधाई बधाई, लक्ष्मी बन कर चलीं आईं,वाह !

Supriya sahu replied

बहुत - बहुत आभार एवं शुक्रिया आदरणीय मनोज सर जी 🥰😊, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

Tulsi patel said

बहुत ही सुंदर रचना सुप्रिया जी आपने तो भावविभोर कर दिया हमें 🥰👌👌

Supriya sahu replied

बहुत - बहुत आभार एवं शुक्रिया आदरणीय तुलसी जी 🥰😊, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

वन्दना सूद said

वाह वाह बहुत खूब 👌👌👏👏

Supriya sahu replied

बहुत - बहुत आभार एवं शुक्रिया आदरणीय वंदना मैम जी 🥰😊, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

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