ख़ुशी मिलने चली आई
ढूंढा जब दिन-रात, कहीं नजर नहीं आई।
ढलते ही शाम के, खुशी मिलने चली आई।।
थके हारे थे हम, अब जोरो से प्यास लगी।
वो हमारी बनकर, प्यास बुझने चली आई।।
डूबे थे ग़म के रास्ते में, है आंखों में आसूं।
वो बिटिया बन, हमारी आंसू पोछने आई ।।
जब कष्टों में नींद नहीं आती, सोच-सोच के।
वो किलकारी बन, हमारी नींद उड़ाने आई ।।
बड़े दिन बाद ही सही, हमारे घर के आंगन में।
"सुप्रिया" लक्ष्मी बन, खुशी मिलने चली आई।।
- सुप्रिया साहू