खाकर रोकड़ा, भ्रष्टाचारियों ने कर दिया है बवाल।
मच रहा है, दफ्तरों में हाहाकार।
विजिलेंस का पड़ा है,छापा।
लाखों की रिश्वत के साथ, है नापा।
मांग रहा था नियुक्ति में,
दसियों लाख।
बनने के करोड़पति अरमान हो गए, खाक।
अब खोलेगा अपने साथियों की पोल,
जब जेल में पड़ेंगे, डंडे गोल-गोल।
अंकीलाल अंक को फंदा फांसी का नजर आने लगा।
मोल रिश्वत का नजर आने लगा।
इंकी रानी इंक कूद गई कुएं में,
हार गई सब रिश्वत के जुए में।
डंकी लाल डंक के,
डंक में फस गया है, कांटा।
भ्रष्टाचार के मुंह पर पड़ गया है,चांटा।
काकी की ताई भी बोल रही थी,
गायब फाइलों के भेद खोल रही थी।
निकल रही है फाइलें बिलों में से,
जिन चूहा नहीं, रिश्वत के रहते थे सांप।
अब अपनी हालत देखकर,
दफ्तर से दफ्तर रहे हैं, कांप।
चांडाल चौकड़ी का होगा बुरा हाल,
एक दूसरे से कहें भाई मुझे निकाल।