ऐसा नहीं कि
अपना ज़माना नहीं आया,
पर तेरे बिना
हर सवेरा धुंधला रहा,
सूरज की तपिश में भी
मेरे मन की बर्फ़ नहीं पिघली।
चाँदनी उतरी तो लगा,
उसकी उजली चादर भी
मेरे लिए कफ़न बन गई है।
सितारे झिलमिलाए,
पर मेरे आँसुओं की परछाइयाँ
उनसे अधिक चमकीली रहीं।
फूल खिले—
हर बग़ीचा मुस्कुराया,
पर मेरी साँसों को
तेरे हाथों की खुशबू के बिना
कोई गंध भा ही न सकी।
पवन ने कई बार
मेरे बालों को छुआ,
जैसे कह रही हो—
“मैं भी तेरा सहारा बन सकती हूँ।”
पर मैं हर झोंके में
तेरे ही स्पर्श की तलाश करता रहा।
नदियाँ बहती रहीं,
सागर ने अपनी बाहें खोलीं,
पर मेरी प्यास
तेरे चरणों की धूल के बिना
कभी तृप्त न हो सकी।
ओ प्रीतम!
तेरी याद—
भूखी रोटी की तरह
मेरी आत्मा का अन्न है,
प्यासे रेगिस्तान में
एक बूंद का सपना है।
मैं हारता रहा हर रिश्ते से,
हर सहारे से,
क्योंकि—
तुझे छोड़कर
किसी और से निभाना
मुझे कभी आ ही नहीं सका।
—इक़बाल सिंह “राशा”
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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