क़दमों का लड़खड़ाना बिल्कुल ग़लत नहीं है
पर फिर से न संभलना , है ख़ुद पर जुर्म करना
वक्त की गर्दिशों का क्यूं करना है गम हमें
अंधेरे से न निकलना है उजालों पर जुर्म करना ।
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