जीवन,
तेरे हाथों में काँटों की लाठी है,
जिससे तू मेरे सपनों की पीठ पर
हर रोज़ नए ज़ख़्म लिखता है।
मैंने हँसी बोई थी,
पर तूने खेत में
आँसू की फ़सल उगा दी।
हर मुस्कान,
मेरे होंठों पर आकर
सूखी मिट्टी की तरह
बिखर जाती है।
नदी ने कहा था—
“बहना ही मुक्ति है।”
पर मैं हर मोड़ पर
पत्थरों से टकराकर टूटा,
और अपनी ही लहरों में
डूबता चला गया।
चाँद ने समझाया—
“रोशनी बाँटो,
यही सुकून है।”
पर मैंने तो अपना उजाला
तेरे अंधेरों को सौंप दिया,
और अब मेरी देह
सिर्फ़ एक दीपक की राख है।
हवा आई,
उसने मेरी साँसों को छुआ—
पर तेरे सवालों का धुआँ
इतना घना था कि
मैं हर श्वास में
केवल घुटन ही पीता रहा।
जीवन,
तूने मुझे सवाल दिए,
पर कोई उत्तर नहीं।
मैं हर रात आसमान देखता हूँ—
जहाँ टूटते तारे
मेरे सपनों की तरह
बुझ जाते हैं।
और मैं सोचता हूँ—
क्या मेरी अधूरी पुकार
कभी तुझ तक पहुँचेंगी?
तू चाहे ईश्वर हो,
या मेरे खोए हुए प्रियतम—
मेरी नम आवाज़
कभी तेरे दिल को छूएगी?
या फिर यह भी
रेगिस्तान की रेत में
दबी हुई चीख बनकर
हमेशा के लिए
गुमनाम रह जाएगी।
-इक़बाल सिंह “राशा”
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




