कर न सकूँ जो निज भावों को अभिव्यक्त,
व्यर्थ शब्दों को सजाने का, कोई सार नहीं,
जिसको पढ़कर हृदय द्रवित न हो जाए तो,
फिर वह विरह व्यथित हृदय का उद्गार नहीं,
जिसमें प्रेम नहीं, व्यथा नहीं वो गीत नहीं।
जो हृदय को न करे झंकृत वो संगीत नहीं।
देख कर मुझे व्याकुल, जो नहीं है चिंतित,
मेरी व्याकुलता से यदि वो परेशान नहीं है,
जिसके वास्ते मैं लड़ गया अपनों से कभी,
जरूरत में साथ नहीं, वो भला इंसान नहीं,
चाहे कोई भी हो पर मेरा तो वो मीत नहीं।
हृदय न तड़पे प्रिय बिन, तो वो प्रीत नहीं।
हर बार मैं ही जीत जाऊँ ये संभव तो नहीं,
हारा जो नियमानुसार, हार है मुझे स्वीकार,
खेल में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है सिद्धांत,
निहत्थों पर तो मैं कभी करता ही नहीं वार,
छल से अगर जीता, तो फिर वो जीत नहीं।
कभी विजय कभी पराजय पर ये रीत नहीं।
🖊️सुभाष कुमार यादव


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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