मन करता है मैं एक,
गहरी साँस हूँ खींचू.
अपने पंखों को फैलाकर,
ऊँची एक उड़ान भरू.
नाप लू सारी धरती, सागर,
बादलों को बाँहों में भरू
आसमान की सैर करू
ऊँची एक उड़ान भरू
मांग लू अम्बर से चटकीले रंग,
जीवन का श्रृंगार करू.
चंदा के देश में जाकर,
तारों से माँग भरू.
बातें करू नदिया, फूलों से,
तितली को हाथों में भरू.
चिड़ियों जैसी फूदकू डाली पर,
ऊँची एक उड़ान भरू.
वर्षा की रिमझिम में नाचू,
माटी की खुशबू को साँसों में भरू.
सच हो जिसमें सपने सारे.
ऐसा इक संसार बुनू.
ईष्या को दिल से मिटाकर,
नफरत की दीवारों को गिराकर.
आशा का गीत रचू.
ऊँची एक उड़ान भरू.
----राजेश्वरी जोशी, [उत्तराखंड]