प्रेम जब कभी स्वयं से किया।
तूँने सामने आकर दर्शन दिया।।
भावविभोर होने लगा मन जैसे।
अभी अभी मुझको वंदन किया।।
प्रतीक्षा की घड़ी जैसे पूरी हुई।
पूजा फलीभूत अभिनंदन किया।।
कल्पनाशील 'उपदेश' दुखी कब।
ख्वाब में जब खोये भजन किया।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद