बाल कविता)
मेरे घर आती गौरैया
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मेरे घर आती गौरैया ।
घर भर को भाती गौरैया।
तिनका-तिनका जोड़-जोड़ कर,
कागज़-पत्तर तोड़-मोड़ कर,
बना लिया उसने अपना घर,
कितना प्यारा, कितना सुंदर,
आँगन में माँ दाने रखती,
बीन-बीन खाती गौरैया ।
मेरे घर आती गौरैया ।।
जंगल झाड़ी में भी जाती,
ढूँढ़-ढूँढ़ कर दाने लाती,
भूखे बच्चे मुँह फैलाते,
अपनी माँ से भोजन पाते,
अपने नन्हें बच्चे लेकर,
कभी-कभी आती गौरैया ।
मेरे घर आती गौरैया ।।
झुण्ड बना कर उड़ती ऊँचे,
टहल घूम कर आती नीचे,
पानी पीती घर के नल से,
पता नहीं क्या कहती जल से,
चीं-चीं चूँ- चूँ दिन भर करती,
सबको बहलाती गौरैया ।
मेरे घर आती गौरैया ।
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~राम नरेश 'उज्ज्वल'
उज्ज्वल सदन
मुंशी खेड़ा,(अपोजिट एस-169
ट्रांसपोर्ट नगर), एल.डी.ए. कालोनी,
लखनऊ-226012
मो: 07071793707
ईमेल : ujjwal226009@gmail.com

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