निशिदिन यह दीवाली है,
मन-दीपक की उजियाली है।
बाहर नहीं — अंतर में देखो,
प्रभु-रोशनी निराली है।
दो नयनों के बीच कहीं पर
एक अलख दीपक जलता है,
तेल नहीं घटता उस दीपक का,
बाती भी क्षण न थमती है।
धीमे-धीमे उस लौ में
मेरे तम सब गल जाते हैं,
जैसे हिम तन पर सूरज पिघले,
वैसे पाप भी ढल जाते हैं।
उस एक किरण की झिलमिल में
अनगिन ज्योति जग जाती है,
हर धड़कन में आतिश फूटी,
हर श्वास मधुर बन जाती है।
तन के भीतर उतर ज़रा तू,
देख — कैसा उत्सव फैला है,
न चकाचौंध, न शोर यहाँ,
बस मौन-गीत ही खेला है।
वह दीप नयनों के बीच जले,
कभी नहीं वह बुझ पाता है,
जो उसमें लीन हुआ ‘राशा’,
हर दिन उसकी दीवाली है।
-इक़बाल सिंह “राशा”
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




