जिदंगी ऐसी है जैसे हम हो किसी कश्ती मे सवार।
इस किनारे से उस किनारे तक करना होता है ये सफर पार।
आते है कुछ पल सुकून के वहीं सूनामी भी आती है अपार।
होता है इन तूफानो का अक्सर ऐसा भी कभी वार।
कश्ती इन तूफानो से बच नही पाती है हर बार।
छूट जाते है कुछ हाथ बीच मझधार ।
जिंदगी ऐसी है जैसे हम हो किसी कश्ती मे सवार।
-राशिका