सुधार कर..
छिप छिप कर, तूँ देखा न कर
हो सके तो आदत तेरी सुधार कर
शंका के बादलों में, हवा की गति न भर
बर्बादी की चौख़ट निमंत्रीत न कर
हो सके तो आदत तेरी सुधार कर
झाँक ख़ुद में, दर्पण सच्चा निहार कर
सबूत कोई मिले तो ज़ाहिर कर
घायल हो गया तो दर्द महेसूस कर
पछतावा सगा नहीं मौका गवा न कर
हो सके तो आदत तेरी सुधार कर...
भरोसे की चद्दर जेहन पर ओढ़ कर
ज़िंदगी की एक नई शुरूआत कर
भ्रम की दुनियां में मन भ्रमित न कर
जो होना है, वो होगा परवाह न कर
हो सके तो आदत तेरी सुधार कर...
कल क्या होगा उसकी चिंता न कर
जो होना है, वो होगा फ़रियाद न कर
वक़्त को पकड़ उसे यूँ ही जाया न कर
जाते लम्हें जा रहें, उसका आदर कर
हो सके तो आदत तेरी सुधार कर...