वो गीत, वो ग़ज़ल, वो साज़ दे जा,
मेरे दर्द को अपनी आवाज़ दे जा।
लिख सकूँ तुझे मेरी सुखन में,
ऐसा कोई अजनबी-सा राज़ दे जा।
गुज़र रहा हूँ गुमनामी के जिस दौर में,
न भटकने के वास्ते कोई सिराज दे जा।
मंजिल मिले न मिले ये अलग बात है,
ख्वाहिशों को मेरे तू कोई फ़राज़ दे जा।
जो जिसे शिद्दत से चाहे, वो उसी का हो ख़ुदा,
दुनिया को ऐसी कोई रस्मो-रिवाज दे जा।
🖊️सुभाष कुमार यादव