जहां तुम्हारा बसेरा है अभी वह भी छिन जाएगा एक दिन ये तुम्हारा निजी मकान थोड़ी है,
हम रग रग से वाक़िफ हैं तुम्हारे यूं बहाने न बनाओ ये कोई आज की बात थोड़ी है,
हर किसी के दिल में होता है एक क़ब्र जहां दफनाते हैं कुछ राज हर कोई ये सच है कोई इल्ज़ाम थोड़ी है,
मेरी बातें किसी को कड़वी लगे तो लगे ये मेरा ज़ुबान है कोई शहद का दुकान थोड़ी है..!
कमलकांत घिरी ✍️