कैसे मन को भाता है पेड़ों पर पत्तों का सरसराना,
जब गर्मियों की हरियाली हवा में लहराना।
जब बलूत, बीच और मेपल मिलकर गुनगुनाते हैं,
और कांपते ऐस्पन की भाषा सबको समझाते हैं।
पतझड़ के ये वनवासी हैं एक संगीतमय दल,
इनकी सरल-सी धुनों में है बचपन का भी हल।
इनकी लय में है एक मतलब, पत्तों में है सुखद बात,
जब हवा चले इन पेड़ों में, उठती संगीत की बात।
धीमी-धीमी फुसफुसाहट से होता है आरंभ गीत,
फिर सुकून भरी एक धुन डर को भी करे जीत।
जैसे-जैसे बढ़े स्वर, फिर गूंजे मधुर तान,
और अंत में मिलती खुशियाँ जब थमता मधुर गान।
सुकून की लहरें लाता जब मंद पवन बहे,
प्रकृति की इस लोरी में मन दूर गगन को गए।
छूटते हैं जग के झंझट, चिंता और पीड़ा सारे,
जब पत्तों की सरसराहट सुन, मन खो जाए न्यारे।
ओह! कितना अच्छा लगता पेड़ों का संगीत सुनना,
जब हवा में पत्तों का मधुर नर्तन हो झनना।
उस जंगल की ध्वनि में है एक मधुर समरसता,
जिसे सुनते मन कहे — यही तो है सच्ची शांति व भलता।
हितेष गुरबकशानी