काव्य भ्रमण में नजर भर गई।
चरितार्थ होते ही वो गुजर गई।।
उठाने वालो की भीड में फंसी।
अदल-बदल कर कंधो पर गई।।
सुलगती आग सीने में दर्द देती।
बुदबुदाते होंठो पर नजर गई।।
भला हो 'उपदेश' उन सब का।
दो शब्द लिखकर नजर कर गई।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद