तृप्ति बनारस प्यास बनारस
नाथ के दरस की आस बनारस
झूठ जले हू- हू करके जँह
सत्य परम् विश्वास बनारस
विश्वनाथ का दरस हो जाए
बुला लेता गर काश बनारस
मुक्ति सृजित होती है जहाँ
भक्ति आती अनायास बनारस
परम् सौभाग्य चिरंजीवी यह
शिव त्रिशूल पर वास बनारस
बारह मास वसंत विराजे
हर - क्षण है मधुमास बनारस
जन्म- मृत्यु के भ्रमर जाल का
जलाकर करता है नाश बनारस
मोह- माया से मुक्त व्यक्ति का
चिर - परिचित है प्रवास बनारस
प्रभु विश्वनाथ के कृपा पात्रों का
विशुद्ध हृदय का अरदास बनारस
अब बुला भी ले अब देर न कर
मेरा अब न उड़ा उपहास बनारस
-सिद्धार्थ गोरखपुरी