आज एक अरसे बाद होने वाली थी
हमारी उनसे मुलाक़ात,
दिल भी उनसे मिलने को था, बड़ा ही बेताब।
वक्त उनसे मुलाक़ात का क़रीब था,
दिल भी ये मेरा बहुत बैचेन था।
आ गया अब वो वक्त भी
जब खड़े थे वो मेरे सामने।
आज एक अरसे बाद हो रही थी उनसे मुलाक़ात, धड़कने बढ़ गई, सांसे थम गई
दिल में हुई हलचल।
दो दिलों का मिलन आज था,
वो भी थे चुप, हम भी थे ख़ामोश
आंखों से निकलने लगे थे खुशियों के अश्क़।
आज एक अरसे बाद उनसे हुई मुलाक़ात,
हमारी नहीं पर हमारे दिलों की तो हुई आपस में बात।
नज़रें चुरा रहे थे उनसे कहीं हमारे रोने की ख़बर उन्हें ना हो जाए,
चुपके से पोछा इन आंसुओं को और देखा नज़रें उठाकर उन्हें।
लग रहा था उन्हें देखकर,
जितने थे उनसे मिलने को हम बेताब
उतने ही थे वो भी बेताब,
जितने दर्दों से हम गुज़रे हैं उनकी जुदाई में, गुज़रे हैं वो भी उन्हीं दर्दों से।
"रीना कुमारी प्रजापत"