तुम्हारे साथ में ढूढा था साया।
मुश्किल से जिस्म को बचा पाया।।
जिस्म है खूबसूरत सा पिंजरा।
आत्मा को देर से समझ में आया।।
जिंदगी अनबुझी पहेली बन गई।
जिन्दा रहकर नही सुलझा पाया।।
धोखा खाकर पश्चाताप करता।
मौत को चूम कर 'उपदेश' पाया।।
कोई तो बात होगी उस जहाँ में।
जो भी गया लौट कर नही आया।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद