रात दिन सपने सुहाने देखकर
लिख रहे अब हैं फसाने रेत परI
कट गए हैं पेड़ जब से ये परिंदे
ढूंढते हैं ख़ुद ही ठिकाने रेत पर I
सर से पानी जो गया ऊपर जरा
होंगे ये नदियों के मुहाने रेत परI
आदमी अपने गुनाहों को छुपाने
इल्जाम देता है ये निशाने रेत पर।
जर्रा जर्रा रोशनी को लीलता इंसा
जलजला है यह सारे बहाने रेत पर I