काश साल की तरह गंदी सोच भी बदलती।
ज़ज्बात के साथ खिलवाड़ की रीति बदलती।।
दिल बाग बाग हो जाता प्रीति घर घर रहती।
रिश्तों में छल न होता और मोहब्बत पनपती।
फिर एक दिन क्या हर रोज नया साल होता।
ख्वाब पूरे होते 'उपदेश' अगर रात रंग बदलती।।
- उपदेश कुमार शाक्य वार 'उपदेश'
गाजियाबाद