हे कवि!मत भूल जाना ,
शब्द को जब धार देना /
देखना अपने युगो को ,
अर्थ को जब सार देना /
ज्ञान नूतन जब समाना ,
युग के तम को जब हटाना /
हे कवि ! तुम याद रखना ,
अपने कल को जब सजाना /
अपनी प्यारी लेखनी से ,
भाग्य लिखना जब समय का /
शब्द जब उद्गार करना,
उस समय तुम याद रखना /
वेद के लेखक तुम्हीं हो ,
वाल्मिकी सा आदर्श रखना /
रचना करना काल हित की ,
व्यास बन जब तुम उतरना /
अपने युग की झलकियो को,
हो यथार्थ तुम खींच देना /
लोक हित की कामना से ,
लेखनी का धर्म रखना /
सत्य को तुम सत्य कहना ,
झूठ के छल में ना आना /
हे कवि ! तुम याद रखना ,
लेखनी गिरवी न करना /
नव रसों को खीच देना ,
छंद की जब लय पकड़ना /
प्रेम को दर्पण दिखाना,
रति भाव की लाज रखना /
राह जिसको तुम पकड़ते ,
लोग पद पीछे हैं चलते /
नियति की तुम कल्पना हो ,
शांति विप्लव गोद पलते/
सृजन की तुम चेतना हो ,
विनाश की भी गोद भरते/
इसलिए तुम याद रखना ,
पथ में न तुम शूल रखना /
अपनी प्यारी कल्पना से ,
विश्व का कल्याण करना /
हे कवि ! तुम याद रखना ,
युग को तुम नव राह देना /
-तेज प्रकाश पांडे