दौर बदला, पर बदला नहीं अन्दाज,
जो कल था वो आज भी है नाराज।
जिसके रग-रग में बहती धोखेबाज़ी,
वो कभी बदल नहीं सकता मिज़ाज।
ये वो मर्ज़, जिसकी कोई दवा नहीं,
हकीम करे तो कैसे, इसका इलाज।
वो मगरूर है, अपनी खूबसूरती पर,
कितने आशिक उसके, है एक राज़।
किसी के अहसासों से, खेलना मत,
वक़्त की मार में होती नहीं आवाज़।
🖊️सुभाष कुमार यादव