कुछ बादल थे, और कुछ थी मेरे साथ हवा..
आज का दिन, फिर दिनभर मेरे साथ रहा..।
गलियों में, महफ़िल में भी, गलबहियां थीं..
जिधर मैं गया, दिन का दरिया साथ बहा..।
वो मुझसे ना बोला, लेकिन सारी बात सुनीं..
सुख दुःख जैसा भी था, मिलकर साथ सहा..।
दिन को मैने गले लगाया, दिन ने पकड़ा हाथ मेरा..
हम दोनों को देख, फिर आफताब हमारे साथ ढहा..।
सांझ ढले सुस्ताने को, पल भर हम जो ठहरे..
ख़ामोशी थी, फिर "अलविदा" मिलकर साथ कहा..।
पवन कुमार "क्षितिज"