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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

मैं और दिन

कुछ बादल थे, और कुछ थी मेरे साथ हवा..
आज का दिन, फिर दिनभर मेरे साथ रहा..।

गलियों में, महफ़िल में भी, गलबहियां थीं..
जिधर मैं गया, दिन का दरिया साथ बहा..।

वो मुझसे ना बोला, लेकिन सारी बात सुनीं..
सुख दुःख जैसा भी था, मिलकर साथ सहा..।

दिन को मैने गले लगाया, दिन ने पकड़ा हाथ मेरा..
हम दोनों को देख, फिर आफताब हमारे साथ ढहा..।

सांझ ढले सुस्ताने को, पल भर हम जो ठहरे..
ख़ामोशी थी, फिर "अलविदा" मिलकर साथ कहा..।


पवन कुमार "क्षितिज"




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (5)

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अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

वाह, कितनी प्यारी और शांतिमय तस्वीर पेश की आपने!
दिन और आपकी दोस्ती की वो नाजुक दास्तां, जो हर पल साथ चलती है।
"ख़ामोशी में ‘अलविदा’ कहना" — यह पंक्ति दिल को छू जाती है, जैसे वक्त भी महसूस करता हो आपके एहसास को।
बहुत सुन्दर, जैसे एक छोटी सी कहानी कवितामय लफ़्ज़ों में बयां हो रही हो।
आदरणीय पवन सर जी को सादर प्रणाम!!

Ankush Gupta said

जिधर मैं गया, दिन का दरिया साथ बहा, वाह! बहुत खूब पंक्तियाँ, बेहतरीन रचना.

सुभाष कुमार यादव said

बहुत सुंदर रचना।👌🙏

पवन कुमार "क्षितिज" said

हौसलाफजई के लिए आपका एहसानमंद हूं..🤗

ANIL KUMAR SHARMA said

गलबहियां और दरिया साथ बहा, आपकी कल्पना अद्वितीय है

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