शमा की चाह में परवाने सा दीवाना होना,
इश्क़ में हद से गुजर कर खुद फ़ना होना।
अपना सब कुछ खोकर भी कुछ न पाना,
इतना आसान समझते हो, आशिक होना।
आँखों से सिर्फ आँसू ही नहीं लहू झरते हैं,
टूट कर जिसे चाहो और उसी का न होना।
जिस्म से रूह के बिछड़ने का जो दर्द है,
उठती डोली को देखकर यूँ गुमसुम होना।
मौत तो यूँ ही बदनाम है वफादार हो कर,
कितना मुश्किल है मरते हुए जिंदा होना।
🖊️सुभाष कुमार यादव