काश जीवन एक सफर होता
और हम सभी होते राही
निकल पड़ते अनजाने रास्तों पर
संचित करने की प्रवृत्ति ना होती हावी
आने जाने वाले होते सभी अपने
ना रिश्ते, ना धर्म, ना झूठे सपने
कुछ गुफ्तगू करते, कुछ मुस्कुराते
ना मतलब ढूंढते, ना फायदा तलाशते
नये मोड़ पर नयी ऊर्जा के साथ
फिर फिर निकलते दुरत गति के साथ
जोड़ तोड़ की गंदगी से परे
सभी समान गति से आगे बढ़ते
गर जीवन एक सफर होता
वह कितना अद्भुत होता
चित्रा बिष्ट
(मौलिक रचना)