एक कलम और बस एक किताब है
फ़कत इतना सा ही मेरा असबाब हैं
रूह के साथ जुड़ा है मेरा यह बदन
बदन के साथ ये चेहरा भी नकाब है
भूल चुका हूँ अब तो खुद का पता मैं
क्या नाम है और कौन सा ख़िताब है
पाल रखा है हमने जिसे इस दिल में
जानलेवा वही तो मेरा बस अजाब है
प्यासे को पानी और भूखे को खाना
दास हर धरम में देना बड़ा शबाब है