सहानुभूति या सफलता
सागर की लहरों में बलखाती दो किश्तियाँ,
किनारे की तलाश में आगे बढ़ीं।
कुछ दूर जाते ही मझदार में फसीं,
तूफ़ानों से जूझते जूझते,हौसला खोने लगीं।
तभी कुछ और किश्तियाँ साथ चलने लगीं,
एक उनके तजुर्बों से सीख ले,
किनारे की ओर बढ़ चली।
दूसरी किश्ती सागर की ख़ामियों में उलझी रही,
सहानुभूति की लहरों में गोते खाती रही।
सागर से भी गहरा यह जीवन का भँवर,
जो सहानुभूति में उलझ गया,उसकी नाव वहीं रुक गई।
जो समाधान खोजता रहा,
उसकी नाव कभी थम न सकी ।
वन्दना सूद
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