तू अगर रात नहीं तो ख्वाब भी नहीं
तू अगर सूरज नहीं तो शाम भी नहीं
जिन्हे ढूंढते हे दर-दर पर घूमकर
तू सब जगह हे. कही दीखता ही नहीं
सबको पीड़ा मेरे चेहरे पे ही दिखती हे
हसते गीरि जो बून्द किसीने देखा ही नहीं
आज उनसे पूछ लीया रुकू या चले जाऊ
वो कुछ कहती ही नहीं हां और ना भी नहीं
जब डोली में बैठते देखा उनको नजरो ने
जिंदगी किस कामकी रुके या रुके ही नहीं
के बी सोपारीवाला