मै शून्य शून्य मैं ही अनंत
मै भाव रूप एक रूप द्वंद्व
मैं का विराट मैं का ये परम
मै कुछ भी नही मैं तो ही तुम l
मैं को कब मैने माना
अपनी सत्ता कब पहचाना
मैं विस्मृत सा व्याकुल सा कुछ
कुछ खोया अपना खोज रहा l
मैं खोज रहा खुद को जग में
मैं खोज रहा खुद को खुद मे
मै कब सत्ता अपनी चाहा
मैं कबसे इसको त्याग रहा l
एक प्रेम राह में भी मैंने
खुद की सत्ता को त्याग दिया l
मैं ही तुम , तुम ही मैं हूं
ये सत्य को उस्मे देख लिया l
फिर भूख लगी कुछ देखूं मैं ,
और ज्ञान सजोने की चाहत ,
कुछ पल ठहरा कुछ पल भटका
कुछ जिज्ञासा या अहम् सहज
पर कुछ भी नहीं मै कुछ भी नही
मै तुममे हूं तुम मुझमें हो l
फिर भय जागा एक पल सहसा ,
मैं हूँ मैं हूँ फिर मै जागा ,
एक अंतिम था बस एक ही था
सत्ता को अपने परख सकू
मैं फ़िर देखा साहस जोड़ा
उस परम योग की छाया में
एक पल को लगा मैं हूँ मैं हूँ
कुछ पल को लगा मैं ही मैं हूं
एक भय जागा साहस टूटा
जब मैं को लगा बस मैं ही हूं
व्यष्टि से समष्टि हे ! प्रियतम
मैं ही तुम हूँ तुम ही मैं हो
मैं शून्य रूप मैं ही अनंत
तेजप्रकाश पाण्डेय -गोलू सतना मध्य प्रदेश