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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

गुजरी जो बीती गलियों से

गुजरी जो बीती गलियों से
हर पगडंडी बोल उठी
खेत की मेड़, नए पुराने पेड़
कुछ पहचाने कुछ अंजान से

बहती हवा ने दी
शिकायत भारी थपकी
कल कल करती नदियाँ भी
सुनाने लगी मीठी झिङकी

आयी बड़े दिन बाद सखी
इतना समय कहां रही
क्या याद करके हमें
हुई तुम कभी दुखी

आंगन पार बूढ़े बरगद
अपना सफ़र तय कर चुके
उनकी छांव तले उगते पौधे
विशाल वृक्ष रूप धर चुके

तुम जो गई वहीं की हो गई
अपने साथियों की सुध ना ली
फिर दशकों तक भुला दिया
कभी भूल कर भी याद नहीं किया

जाने दो शिकवे शिकायत
आओ बैठो मिटाओ थकावट
बालों में तुम्हारे अब सफेदी है
पर मेरे लिए आज भी नन्हीं बेटी है

और अगली बार जब हो आना
इतना लंबा वक्त न लगाना
समय पर हम तो निकल जाएंगे
पर तुम्हारे बचपन के पल खो जाएंगे

चित्रा बिष्ट




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

+

Updesh Kumar Shakyawar said

अच्छी कोशिश...नमस्कार

Lekhram Yadav said

अपनी यादों को बड़ी खूबसूरती से पेश किया आपने चित्रा जी, आपको सुप्रभात सहित सादर नमस्कार।

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