विपत्तियों में जब भी स्वयं को पाया,
कुछ प्रखर, प्रबल-सा मैं निखर आया।
जब भाग्य ने चुना कठिन कर्म हेतु,
हर कर्म ने कुछ न कुछ सिखलाया।
झिझक,लज्जा, भय ने बाँधे तो पग,
तोड़ बंधनों को मैं चलता चला गया।
सुख-दुख दोनों में रहा सदा ही सम,
जीवन का राग नया सदैव मैंने गाया।
मुझसे बिछड़ कर जाने वाले जाते रहे,
जो आया उसको मैंने सहर्ष अपनाया।
विपत्तियों में जब भी स्वयं को पाया,
कुछ प्रखर, प्रबल-सा मैं निखर आया।
🖋️सुभाष कुमार यादव