गोरी से मिलन चले , ख्वाब को बुनन चले
सेंट - वेंट रचि - रचि देह पे लगाई के l
शरट किरीच वाला, पहेंट नव नीक वाला
ओकरा पे बेल्ट करिया झट से लगाइ के l
ख्वाब - ख्वाब दौड़े गोरी, बनि कइके चाँद चकोरी
छोड़ि दिए ख्वाब में ही माला पहिनाई के l
भाव से भरल रहे, गागर अध-जल रहे
मनिहें गागर के सागर में छलकाइ केl
नेह में जरेला देंह, देंह में जरेला नेह
हिय में बसल जाला नेह रिसियाइ केl
होये में बड़ देर लागे , कवनो न फेर लागे
मेल होइ गोरी से कब मंद मुसुकाइ केl
सामने जे अइहें गोरी, शायद लज़इहें गोरी
हमहू उनका के देखब खूबै लजाइ के l
गोरी केंन्नो ढीठ होखें, चाहे मारपीट होखे
मानब हम दुआरे उनका बारात ले जाइ के l
अगुआ अगुआनी करिहै, भले मनमानी करिहै
पियरकी निशानी पईहेन वियाह मोर कराइ के l
-सिद्धार्थ गोरखपुरी