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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

एक सोफा

कभी सोफ़ा बड़ी शान से आया था,
और आकर जम गया था दालान में..
इठलाता हुआ और तारीफें सुन सुन
मुंह गर्व से फूला हुआ सा..
अपनी मजबूती को परखता
अंगद के से पांव जमाए..
कुछ दिन तो जोश और जवानी में
भरा हुआ, अलग अलग सांचों में
ढली हुई देहों को संभालता रहा..
मगर अब रोज रोज थकी हुई
देहों को लपकते लपकते
उसकी सांसे उखड़ने लगी है..
उसकी अस्थि संधियां भी तो
चरमराने लगी हैं..
और उसका
मुखमंडल भी अब सलवटों से भरा
जा रहा है और सबसे ज्यादा तकलीफ़ तो इस बात की है कि अब उसकी कोई बात भी नहीं करता बस हर दिन
उसकी कमियां ही उजागर हो रही है
अब उसका मन बिल्कुल उचाट हो गया है
सोच रहा है कोई
उसे अब बच्चों के कमरे में लगा दे..
ताकि
इन मुटियाती देहों से बचकर
कुछ दिन की जिंदगी और गुजार ले
किसी नए सोफे के आने तक...

पवन कुमार "क्षितिज"




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

रीना कुमारी प्रजापत said

👌👌👌

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

वाह… यह तो सिर्फ़ सोफ़े की कहानी नहीं, हमारी ज़िंदगी की भी बड़ी मार्मिक और प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है। "अंगद के से पांव जमाए" — क्या शानदार रूपक है! पुरानी चीज़ों की उपेक्षा और नई की लालसा पर आपकी यह कविता गहराई से सोचने पर मजबूर करती है। कविता कम, एक अनुभवी मन की बात ज़्यादा लगती है — दिल को छू गई। 🌿आपको सादर प्रणाम पवन जी

वन्दना सूद said

वाह बहुत खूब sir, पुराने सोफे से लगाव को बहुत ख़ूबसूरती से बयान किया आपने 👏👏👌👌

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