कभी सोफ़ा बड़ी शान से आया था,
और आकर जम गया था दालान में..
इठलाता हुआ और तारीफें सुन सुन
मुंह गर्व से फूला हुआ सा..
अपनी मजबूती को परखता
अंगद के से पांव जमाए..
कुछ दिन तो जोश और जवानी में
भरा हुआ, अलग अलग सांचों में
ढली हुई देहों को संभालता रहा..
मगर अब रोज रोज थकी हुई
देहों को लपकते लपकते
उसकी सांसे उखड़ने लगी है..
उसकी अस्थि संधियां भी तो
चरमराने लगी हैं..
और उसका
मुखमंडल भी अब सलवटों से भरा
जा रहा है और सबसे ज्यादा तकलीफ़ तो इस बात की है कि अब उसकी कोई बात भी नहीं करता बस हर दिन
उसकी कमियां ही उजागर हो रही है
अब उसका मन बिल्कुल उचाट हो गया है
सोच रहा है कोई
उसे अब बच्चों के कमरे में लगा दे..
ताकि
इन मुटियाती देहों से बचकर
कुछ दिन की जिंदगी और गुजार ले
किसी नए सोफे के आने तक...
पवन कुमार "क्षितिज"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




