व्यक्तित्व की दुर्बलता
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प्रेम मानव जीवन का सबसे पवित्र और गहरा भाव है। यह केवल हृदय की कोमलता ही नहीं, बल्कि आपसी विश्वास, सम्मान और त्याग का प्रतीक भी है। किंतु जब कोई व्यक्ति अपनी उचित या अनुचित बात को मनवाने के लिए प्रेम का वास्ता देता है, तो वह प्रेम की गरिमा को कम करता है।
प्रेम कभी दबाव या बाध्यता का साधन नहीं होना चाहिए। यदि प्रेम को आधार बनाकर अपनी इच्छाएँ पूरी कराने की कोशिश की जाए, तो यह न केवल रिश्तों की पवित्रता को आहत करता है, बल्कि हमारे व्यक्तित्व की कमजोरी को भी उजागर करता है। क्योंकि सशक्त व्यक्तित्व वही है, जो तर्क, सत्य और नैतिकता के आधार पर अपनी बात रखे, न कि भावनाओं का सहारा लेकर दूसरे को विवश करे।
व्यक्तित्व की मज़बूती इस बात में है कि हम अपने विचारों और इच्छाओं को ईमानदारी और स्पष्टता के साथ प्रस्तुत करें। प्रेम का अर्थ यह नहीं कि सामने वाले की स्वतंत्रता छीन ली जाए, बल्कि यह है कि उसे उसके अस्तित्व और निर्णयों के साथ स्वीकार किया जाए।
इसलिए, प्रेम की मर्यादा बनाए रखना और अपनी बात को सशक्त तर्कों व संतुलित आचरण से रखना ही एक मजबूत व्यक्तित्व की पहचान है।
— डॉ. फ़ौज़िया नसीम शाद

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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