झूठ - डॉ एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
हमसे झूठ,
जरा सोच समझ कर बोलिए।
कर लिया गवन,
अब तो सच बोलिए।
करी जो खातों में,
हेरा फेरी।
अब उन नोटों का,
वजन तोलिए।
कसा शिकंजा,
सरकारी कागजी लाठियों का,
अब उनकी मार की,
आवाज देखिए।
नियम तो,
बहुत पुराने थे।
सरकारी नौकर,
शायद नये जमाने थे।
नियमों को भूल गए,
इनकी लापरवाही से।
कितने ही ऐ!"विख्यात",
फंदे पर झूल गए।