एक सूक्ष्म पल्लव,
कुसुमदल सा,
जीवन जब,
नव आरम्भ है होता,
सच मानो अच्छा लगता है ,
चाहे फिर वो जिसका भी हो,
एक छोटा पौधा हो चाहे,
जिसने बस जड़ अभी हों पकड़ी,
या फिर वो मेरी बिटिया हो,
देख देख मुस्काती हो जो,
इधर उधर कनखी से निहारे,
मातृत्व को पुकारती हो जो,
जीवन जब
नव आरम्भ है होता
सच मानो अच्छा लगता है
चाहे फिर वो जिसका भी हो।
----अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'