बहती नदियों का एक सैलाब देखा है,
मैंने हरपल टूटता हुआ एक ख्वाब देखा है।
दो पल की खुशियों के बाद,
मैंने दुख का एक जंजाल देखा है।
किनारे पर खड़ी लाचार,
मैंने डूबता हुआ एक नाव देखा है।
घनघोर बारिश के बाद,
मैंने सूखा हुआ एक रेगिस्तान देखा है।
अक्सर जिक्र करती हूँ साहस का,
पर मैंने डरता हुआ एक इंसान देखा है।
दूसरों के दर्द को पूछती हूँ,
पर मैंने खुद को अपने गमों में बेहाल देखा है।
सारे मसलों का कारण जानते हुए भी,
मैंने खुद को चुपचाप देखा है।
अक्सर पूछते हैं हाल मेरा सब,
पर मैंने किसी को न अपना सा देखा है।
एक मैं ही थी मेरी साथी,
आज उसको भी मेरे साथ न देखा है।
----अनामिका