उसके चेहरे की खुशी देखने के लायक बनकर।
बड़ी मेहनत से कमा कर लाया नायक बनकर।।
खुद को भूखा ही रखा तब कमा पाया मजदूरी।
हाथ जोड़ता ही रहा दिल से विनायक बनकर।।
जिसने धूप में जल कर खेतों में उगाई फसलें।
तब कहीं दो जून की रोटी लाया लायक बनकर।।
और क्या दे पाएगा इतनी महंगाई के ज़माने में।
वायदा करके मुकरा मुखिया विधायक बनकर।।
गाँव आज भी उलझे नाली खरिनजा बिजली में।
अस्पताल दूर की कौड़ी 'उपदेश' सम्यक बनकर।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद