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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

भूलभुलैयाँ - ब्रेथलेस स्टाइल - अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'

बागी बानी एवं लिखन्तु डॉट कॉम प्रस्तुत करते हैं - अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' लिखित एवं बागी बानी स्टूडियोज क्रिएटिव सांग भूलभुलैया






निकला अकेला था

प्यार की राहों में

राहें थी गुमसुम

भटका अकेला था

गुमसुम राहों में

राहों में काँटा था

मन में यह ठाना था

रुकना नहीं था

चलते ही जाना था

रुकने से पहले मुझे

मंजिल को पाना था

दूर थी पास थी

किसकी तलाश थी

कुछ भी पता ना था

पाने की आस थी

तब भी न रुकता था

तब भी न थकता था

गर्मी की धूप में

लगती जो प्यास थी

नजरें मिलाने को

दिल यह बेताब था

दिल में था अरमाँ

उसको पाने का

मन में जुनून था

चलते ही जाने का

भूल भुलैया सी इन राहों में

डर था तो बस कहीं खो जाने का

जाना तो दूर था

रब की तलाश में

ढूंढा मैंने कहाँ कहाँ

और रब तेरे पास में

अब तू ही इबादत

तू ही मेरा रब है

रहना है तुझमें

तू ही मेरा सब है

तुझसे है दुनिया

तुझसे ही प्यार है

तेरे बिना मेरा जीना बेकार है

जीना है मुझको

पहलू में तेरे

तुम भी तो रहते हो

दिल में हमारे

जाऊँ कहा अब

मुझे कहीं जाना नहीं

तेरे सिवा मुझे

कुछ भी तो पाना नहीं

माँगा था तुझको

रब से दुआओं में

बसती हो तुम मेरे

दिल की सदाओं में

किस्मत की लकीरो से

तुमको चुराया है

पता नहीं कैसे कैसे

तुमको पाया है

पता नहीं कैसे कैसे

तुमको पाया है

पाया है तुमको

चैन मेरा खोकर

यादों में तेरी

रातों को रोकर

रातों में रोया था

यादों में खोया था

खोया था कितना

फिर भी था होश में

रोया था कितना

फिर भी था जोश में

रोया था खोया था

खोया था रोया था

रोने के बाद में

खोने के बाद में

रब की दुआ से

तू है मेरे साथ में

मेरा खुदा है तू

जग से जुदा है तू

दिल से तो पूछो

तुझपे फ़िदा है क्यों?

यही तमन्ना है

यही है चाहत

पहचानू तुझको

मैं सुनकर आहट

तेरा साथ है

हाथो में हाथ है

सच में सौगात है

या कुछ और बात है

सुबह हुई तो

मैंने पाया

एक सवाल

मेरे मन में आया

क्या था वो सच?

या फिर कोई सपना था?

जो भी था जाने दो

पर कोई अपना था

जो भी था जाने दो

पर कोई अपना था

----अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (6)

+

ललित दाधीच said

बहुत सुंदर है ❤️❤️

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय ललित जी को सादर प्रणाम करते हुए उनका आभार व्यक्त करता हूँ आपका बहुत शुक्रिया

शिवचरण दास said

बहुत खूब. ..वाकई ब्रेथलेस महसूस होता है

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

स्वयं आदरणीय दास सर जी की समीक्षा का आना जैसे मन की मुराद का पूरा होजाना, आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय एवं आपको सादर प्रणाम आपने रचना को पढ़ा सुना और समीक्षा योग्य पाया मेरी म्हणत सफल होगयी सादर प्रणाम

रीना कुमारी प्रजापत said

Padhkar or sunakar hairaan hai hum to👌👌👏👏🙏🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय रीना Mam जी को प्रणाम सहित हृदय से आभार, आपकी इतनी सुन्दर प्रतिक्रिया पाकर हम भी हैरान हैं

सुभाष कुमार यादव said

बहुत सुंदर।👌👌

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय यादव सर जी को प्रणाम सहित हृदय से आभार

श्रेयसी said

बहुत ख़ूब लाज़वाब भगवान करे निर्बाध ये creativity आगे बढ़े । अशोक जी बहुत-बहुत बधाई हार्दिक शुभकामनाएंँ ।🙏🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय Mam, को सादर प्रणाम सहित धन्यवाद!!

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

वाह अशोक जी। हृदय में भरी प्रीत की सागर को, जैसे, धरती पर उड़ेल दिया है। गीत इतनी प्यारी है कि सुनते समय सांसे तो, जैसे,थम सी जाती है। आपकी शब्दों की इंजीनियरिंग बेमिसाल है।आप इतना आगे बढ़ें कि बुलंदियां भी क़दम चूमे। सादर अभिनन्दन अभिनंदन अभिनंदन!!

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय सोनवानी सर जी को सादर प्रणाम सहित धन्यवाद आपकी समीक्षा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं!! आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय

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