" लेखनी मेरी"
लिखती हूँ, क्योंकि लिखना अच्छा लगता है,
मेरे लिखे हर शब्द में,
लोगों को कोई किस्सा सा लगता है।
ऐसा नहीं की हर शब्द है मेरा, खयालों से निकला हुआ
कोई कोई शब्द मुझे भी,
मेरा हिस्सा सा लगता है।
एक अरसा हुआ, ज़ज्बातों को दिल में दबाए हुए
जब उतारती हूँ कागज पर,
मन कुछ हल्का सा लगता है।
पूरा वाकिया घूम जाता है आंखों के सामने मेरे,
किस्सा कितना भी पुराना क्यूँ न हो, बस कल का सा लगता है।
कभी कोई ख़ास पल जब, छू जाता है धड़कन को
पंक्तियों में बयाँ करना उसे,
फिर एक सपना सा लगता है।
उसे फिर जोड़ कर ख़ुद से,
मैं सारी रात बुनती हूँ
सुबह जो सामने होता है,
वो उमंगों का एक कारवाँ सा लगता है।
कुछ खट्ठे कुछ मीठे सुर,
ढूंढ़ना सोच की गहराइयों में जा कर के
चुन चुन कर एक साथ में लाना, सागर में मंथन सा लगता है।
जिंदगी के हर पल को गुनगुनाना सरगम की तरह,
तैयार होकर के, वीणा की मधुर झनकार सा लगता है।
आसान होता नहीं, जज़्बातों को कहानी का रूप दे देना
कोशिश होती है जब पूरी,
तो किस्सा बड़ा अपना सा लगता है।
फ़िज़ा के रंग भी जब कभी जुड़ते हैं लफ़्ज़ों से,
अल्फ़ाज़ों से मौसिक़ी का रिश्ता बड़ा गहरा सा लगता है।
लिखती हूँ, क्योंकि लिखना अच्छा लगता है
मेरे लिखे हर शब्द में, लोगों को कोई किस्सा सा लगता है।
रचनाकार- पल्लवी श्रीवास्तव
ममरखा, अरेराज, पूर्वी चम्पारण (बिहार)

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




