फ़िर गहरी नींद में सोना चाहूँ,
दिल भर कर अब रोना चाहूँ,
......उन सपनों से मिलना चाहूँ ...
जो ले गए मेरे बचपन को,
फ़िर उन्न एहसासों में खोना चाहूँ,
फ़िर गहरी नींद में सोना चाहूँ,
क्या नानी दादी का वक्त था जो,
उन लम्हों में रहना चाहूँ,
फ़िर गहरी नींद में सोना चाहूँ,
फ़िक्र का तब नाम न था,
पैसों का कोई दाम न था,
.....यह वक्त भी कितना जालिम है,
उन लम्हों में रहना चाहूँ,
फ़िर गहरी नींद में सोना चाहूँ,
फ़िर गहरी नींद में सोना चाहूँ,
लेखक: कवि राजू वर्मा
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




