किसने कहाहै आपको हरदम बगावत कीजिये
यह सर जमीं है अपनी इसकी इबादत कीजिये
मुमकिन नहीं है हरकोई सरहद का हो सिपाही
भीतर छिपे जो दुश्मन उनसे हिफाजत कीजिए
है मुल्क हर किसी का चाहे कोई भाषा मजहब
जिसमें भला सभी का ऐसी सियासत कीजिये
हर और तोड़ने की जो हैं साजिश यहाँ निरंतर
अच्छा यही है उनसे खुलकर अदावत कीजिए
सब कुछ दिया है मुल्क ने ये दास की है बारी
अब और चाहिए कुछ माँ से इनायत कीजिये
जब जननी जन्म भूमि हों स्वर्ग से भी बढ़कर
क्यों बेफजूल बातें हैं कैसी शिकायत कीजिए