कापीराइट गजल
जब, यह दुर्घटना सरे आम हुई, हर सांस को यारो थाम गई
एक, पल में टूटी सांसें कितनी, हर एक सुबहा की शाम हुई
वो खुश थे बिछङ कर अपनों से दिल में एक अरमान लिए
मिल गए खाक में ख्वाब कई, एक पल में खुशी तमाम हुई
कितनी आशाएं थी मन में और कितने ही ख्वाब सजाए थे
किसको मालूम था क्या होगा, हर एक की खुशी तमाम हुई
उम्मीद बसी थी उनकी आंखों में अपनों के संग मिलने की
दम तोङ गई उम्मीद सभी की जब मौत सभी के नाम हुई
यह देख के सब परेशान हुए, जब गुजरा ये मंजर आंखों से
यूं आंख से छलक उठे आंसू हर शख्स की खुशी तमाम हुई
कितनों ने खोया अपनों को और कितनों ने दर्द सहा दिल में
बचा न कुछ कहने सुनने को जब उन पर गम की शाम हुई
लब पे छाई थी खामोशी और ये आंखें भी कुछ नम सी थी
यह देख कर ही हैरान थे सब क्यूं ऐसी घटना सरे आम हुई
हर जाने वाले को नमन है अपना फिर से न घटे मंजर ऐसा
ईश्वर उन सब को शक्ति दे मुश्किल जिन-जिन के नाम हुई
एक छोटी सी भूल ने क्यूं जीवन इतने संकट में डाल दिए
कोई कुछ न कर पाया यादव तर गम से ये अपनी शाम हुई
--- लेखराम यादव
- ( मौलिक रचना )
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