माँ की करुणा
आज समझा
जब एक लड़की
पहले स्त्री बनी
मेरी पत्नी बनी
मेरा साथ दिया
फिर कुछ ऐसा हुआ
९ माह तक
एक भ्रूण को
भ्रूण से शिशु
अपने गर्भ में बनाया
जो कुछ भी खाया
उसमे से उसे भी खिलाया
माँ मेरी भी है
उसने भी मेरे लिए
यही सब किया होगा
मैं सच में ऋणी था
ऋणी हूँ ऋणी रहूँगा
अपनी माँ का
लेकिन सच में
माँ की करुणा
आज समझा
जब मैं पिता बना
और मेरी संगिनी माँ
और ये भी समझा
एक नही,
हर किसी की
कम से कम
दो माँ होती हैं
एक जिसने
गर्भ में पाला
एक जिसने
जन्म दिया
आखिर एक
गर्भाशय भी
९ माह तक
पालता है
एक शिशु को
जन्म लेने के बाद
ढूंढ़ता है घूमता है
इधर उधर खोजते हुए
कहाँ गया, उसका एक हिस्सा
और कुछ दिन में
शांत होजाता है
थककर,
जब नहीं ढूंढ पाता
शायद वो भी समझ
जाता ही होगा
ठीक ही होगा
उसका शिशु
किसी यशोदा के पास
वास्तव में
माँ की करुणा
आज समझा।
- अशोक कुमार पचौरी
(जिला एवं शहर अलीगढ से)