दुनिया भर की किताबें पढ़ रहे,
किसी का मौन कभी पढ़ा क्या?
किसी अशक्त को गिरते देख के,
उठाने को कदम कभी बढ़ा क्या?
किसी बच्चे की लटकी पतंग को,
उतारने पेड़ पर कभी चढ़ा क्या?
किसी कमजोर का साथ देने को,
अन्यायी से खूब कभी लड़ा क्या?
अगर किया नहीं जीवन में ऐसा,
जी कर ज़िन्दगी, फिर गढ़ा क्या?
🖊️सुभाष कुमार यादव