एक दौर था...
एक दौर था जब खुले रहते थे
घर के खिड़की दरवाज़े,
पड़ोसी भी आते-जाते थे
बिना नाम पुकारे।
ताज़ी धूप और हवा का आलम
तब तो कुछ और ही था,
शाम की चाय का मज़ा
दोस्तों संग अनमोल था।
मोहल्ला एक परिवार था,
ना तेरा, ना मेरा,
आस-पास ही होता था
चाचा-मामा का बसेरा।
दिल बड़े थे सबके, तब तो
सब एक कमरे में ही समा जाते थे,
ना ही कूलर, ना ही ए.सी.,
बस पंखे की हवा के सहारे थे।
आज है सब कुछ, पर दिल ही नहीं है,
ना ही कोई आता-जाता है।
बंद खिड़की और दरवाज़ों में
बस घुटन का साया रह जाता है।
यारी-दोस्ती भी तो अब
टीवी और मोबाइल के साथ है,
कहाँ गई वो मित्र-मंडली,
रही नहीं अब वो बात है।
सुख-सुविधाओं ने अब तो
वो प्यारा सा बचपन ही छीन लिया,
हमने जिए थे जो अनमोल क्षण,
सब आधुनिकता ने छीन लिया।
शिल्पी चड्ढा

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




